लेखनी प्रतियोगिता -06-Dec-2022..... रुहानी रुह...
आज मौसम सवेरे से बहुत सुहाना था.. आफिस जातें वक्त हल्की सी बूंदाबांदी भी हुई थीं... सूरज दादा तो सवेरे से पधारे ही नहीं हैं..। ठंडी ठंडी हवा और गीली मिट्टी की सौंधी सी खुश्बू मन को एक अलग ही सुकून दे रहीं थीं...।
घर से निकला तो बीवी को फरमान देकर आया की शाम को पकौड़े हो जाएं...।
बारिश के मौसम की शुरुआत हो...चाय और पकौड़े का साथ हो तो जिंदगी जन्नत लगने लगती हैं...।
मुझे प्याज के पकौड़े बेहद पसंद हैं पर मोहतरमा को मुंगदाल के पकौड़े खाने थे... सो मैंने भी रजामंदी दे दी...। कभी कभी बिना बहस के पत्नी का कहना भी मान लेना चाहिए... वरना बिना पकौड़े के ही शाम बितानी पड़ जाती हैं...।
आफिस में काम करते करते भी आज ध्यान बार बार खिड़की से सिर्फ बाहर की तरफ़ ही जा रहा था... हल्की हल्की बारिश अभी भी जारी थीं... ।
शाम होतें होतें बारिश का मिजाज़ थोड़ा जोशीला हो चुका था...। आफिस छुटा और मैं अपनी बाइक लेकर घर की ओर चल दिया..। चूंकि बारिश का मौसम था तो रेनकोट मैं अपने बैग में रखता ही था..। रेनकोट से अपने आप को अच्छे से ढककर मन ही मन पकौड़े की खुश्बू लेकर रवाना हो गया..।
बारिश की वजह से आज मुख्य सड़क पर ट्रेफिक जाम हो गया था...। अब मुझे घर वक्त पर पहुंचना था क्योंकि मुझे जोरों की भूख भी लगी थीं...।
कोई ओर दिन होता तो कही रुककर चाय नाश्ता करके घर चला जाता... पर आज पत्नी से पंगा लेने का बिल्कुल मुड नहीं था...।
सवेरे फरमान जो देकर आया था... बाहर से नाश्ता करके जाता तो माँ काली के दर्शन हो जाते.... इसलिए कोई रिस्क लिए बिना मैं तंग गलियों से गुजरते हुवे जाने लगा..।
लेकिन हाय रे मेरी फूटी किस्मत... तंग गलियों से जाना मुझे भारी पड़ गया और ना जाने कैसे मेरी बाइक का पिछला टायर पंचर हो गया...।
मरता क्या ना करता.... बाइक को घसीटते हुवे अपने घर चलने लगा...।
घर अभी भी तकरीबन डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर था...। एक सुनसान सड़क से अपनी बाइक को घसीटते घसीटते जा रहा था की अचानक किसी ने पीछे से आवाज दी :- रुकिए सर....।
मैं आवाज सुन कर रुका तो एक युवक जिसकी उम्र लगभग पैंतीस वर्ष की होगी... । हट्ठा कट्ठा नौजवान...उसका शरीर बेहद सुडौल था...।देख कर लग रहा था की वो जिम वगैरह में जाता होगा...।वो मेरे नजदीक आया और बोला :- क्या हुआ सर...?आप बहुत हांफ रहे हैं...! पेट्रोल खत्म हो गया हैं क्या..!
मैनें कहा :- अरे नहीं नहीं... वो टायर पंचर हो गया हैं...। ऊपर से ये बारिश और सड़क पर भरा हुआ पानी.... बाइक को घसीटते घसीटते थोड़ी थकान हो गई हैं और कुछ नहीं..।
ओहह.... कोई बात नहीं सर... मैं आपकी बाइक ले चलता हूँ.. आपको थोड़ा आराम मिलेगा.. ।
अरे नहीं नहीं... मैं बस पहुंचने ही वाला हूँ..। आप बेकार परेशान हो रहें हैं... और आपने तो रेनकोट भी नहीं पहना हैं... पहले ही इतने भीग चुके हैं..। ज्यादा भिगेंगे तो बिमार पड़ जाएंगे...।
लेकिन सर यहाँ से आगे का रास्ता तो बहुत वीरान हैं... और बारिश में तो ज्यादा ही सुनसान रहता हैं... आपको मुख्य सड़क से आना चाहिए था... ।
हाँ मैं जानता हूँ... पर मुझे आज घर थोड़ा जल्दी जाना था तो इसलिए.... सड़क पर बहुत ज्यादा ट्रेफिक था आज..।
ओहह... सर आप गलत ना समझे तो मैं आपके साथ ही चल सकता हूँ..। ऐसे रास्ते में एक से भले दो..। वैसे मैं भी इसी तरफ जा रहा हूँ..।
मेरे हां करते ही हम दोनों बातें करते करते उस सुनसान रास्ते से होतें हुवे चल दिए...। थोड़ी देर में ही मैं अपनी मंजिल तक पहुँच चुका था...। बातें करते करते सच में उस रास्ते पर बिल्कुल डर नहीं लगा ना ही वक्त का पता चला...। मैंने उस शख्स को जिसका नाम उसने राजीव सक्सेना बताया था ओर वो हमारे फ्लैट में पीछे की तरफ़ ही बनी एक सोसाइटी में रहता था...उसे भीतर चलने को कहा और आग्रह किया की पत्नी के हाथ के पकौड़े खाकर जाएं पर उसने मना कर दिया ओर फिर कभी आने का आश्वासन देकर वहाँ से चला गया..।
मैं लिफ्ट से होता हुआ चौथी मंजिल पर बने अपने घर की ओर आया... दरवाजे के बाहर से ही पकौड़े की खुश्बू आ रहीं थीं..।रिंग बजाते ही श्रीमती जी ने दरवाजा खोला और मैं फटाफट हाथ मुंह धोकर... कपड़े बदलकर बालकनी में दो कुर्सियां लगाकर बैठ गया..। कुछ ही देर में पत्नी चाय और पकौड़े लाई...। पकौड़ो का लुत्फ़ उठाते हुवे उसने देर से आने का कारण पूछा और मैने पूरी रामकहानी सुना डाली...।
एकाएक पत्नी की आंखे चौड़ी हो गई... उसका मुंह खुला का खुला रह गया ऐसा लगा मानो उसे चार सौ चालिस का झटका लगा हो... वो जोर से चीखीं..... क्....... क्या.... क्या...
ना... नाम..... बताया... आप...आपने... फिर से.... बोलो....
राजीव सक्सेना.... वो पीछे वाली निकुंज सोसाइटी में रहता हैं...। तुम जानती हो क्या उसे..!
मेरे इतना कहते ही श्रीमती जी के हाथ से पकौड़े के साथ साथ चाय का कप भी छिटक गया... उसका चेहरा पसीने से तर बतर हो गया..। मैने अपनी चाय और पकौड़े वापस प्लेट में रखें और उसके पास जाकर बोला :- क्या हुआ... तुम इतना घबरा क्यूँ गई हो... ये नाम सुनके... तुम जानती हो क्या उसे...!
वो मेरे गले से लगकर बोलीं :- मैं ही नहीं... यहाँ रहने वाला लगभग हर शख्स उसे जानता होगा.. वो जिम का ट्रेनर था... अपनी सोसाइटी में बहुत लोगों को ट्रेनिंग देता था...। मैंने कभी देखा नहीं था पर उसके बारे में सुना बहुत कुछ था..। वो बहुत ही नेक और दिल का साफ़ शख्स था..। हमेशा हंसता और हंसाता रहता था...। लोगों की मदद करता था... दान भी बहुत देता था... गरीब और बेसहारा लोगों को...।
था.... था से तुम्हारा क्या मतलब...!!
वहीं तो मैं सुनकर हैरान हूँ राहुल.... तुम जिस राजीव सक्सेना की बात कर रहे हो वो आज से तीन महीने पहले ही मर चुका हैं... मैं खुद उसकी बैठक पर जा चुकी हूँ... फ्लैट के लोगों के साथ... मैने तुम्हें बताया भी था...पर शायद तुम्हे याद नहीं...।
पत्नी का इतना कहना ही था की मुझे तो मानों आठ सौ चालिस का झटका लग गया हो... । मेरी भी आंखें फटी की फटी रह गई... और पूरा शरीर पसीने से तर बतर हो गया...।
मैं और मेरी श्रीमती अच्छे से समझ गए की जिससे मैं मिलकर, बतिया कर ,मजाक करता हुआ आया था... असल में वो एक रुह थीं...।
लेकिन इतना तो समझ आ गया था की उस रुह का उद्देश्य मुझे नुकसान पहुंचाने का बिल्कुल भी नहीं था... बल्कि वो उस सुनसान राह में मेरे डर को बांटने और मुझे हिम्मत देने के लिए आया था...।
Gunjan Kamal
07-Dec-2022 09:37 AM
Nice 👍🏼
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Abhinav ji
07-Dec-2022 08:07 AM
Very nice👍
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Parangat Mourya
07-Dec-2022 12:02 AM
Nice 👍
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